— आशीष विश्वास
भारत ने हमेशा की तरह, अपने पड़ोसियों की ज़रूरत की घड़ी में उनके साथ खड़े रहने की प्रतिबद्धता दोहराई। हालिया वार्ता के बाद बांग्लादेश ने पहले ही भारत से आवश्यकताओं की एक संशोधित सूची जमा कर दी है। लेकिन नेपाल के साथ-साथ उसे अभी भी भारत पर भरोसा है कि वह प्रमुख रूप से उसकी मदद करेगा।
भारत और बांग्लादेश दोनों अगले साल की शुरुआत में आम चुनाव कराने की तैयारी कर रहे हैं, परन्तु संबंधित अधिकारियों को प्रभावी खाद्यान्न आपूर्ति श्रृंखला बनाये रखने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में बेहद कठिनाई हो रही है।
नेपाल आने वाले त्यौहार के मौसम में बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए भारत से बड़ी मात्रा में चावल, गेहूं और धान बेचने का आग्रह कर रहा है, और उम्मीद की जा रही है कि दिल्ली एक विशेष उपाय के रूप में खाद्यान्न निर्यात पर अपने वर्तमान प्रतिबंध में ढील देगी। नेपाली प्रशासन, जिसने हाल ही में फसल की कीमतों को स्थिर करने या कम करने में भारत की मदद करने के लिए टमाटर की पर्याप्त मात्रा बेची है, ऐसे समय जब देश के अधिकांश राज्यों में 140 - 200 रुपये के बीच था, उम्मीद की जा रही है कि भारत भी उसके लिए कुछ करेगा।
खाद्य पदार्थों के साथ-साथ ईंधन की बढ़ती कीमतें, मौजूदा मुद्रास्फीति के रुझान में योगदान दे रही हैं, जो अभी भी भारत के क्षेत्रीय पड़ोसियों के बीच प्रमुख चिंता बनी हुई है। अत्यधिक गर्मी और अनियमित तथा घटती बारिश के साथ वैश्विक तापमान वृद्धि के विनाशकारी प्रभावों ने अधिकांश स्थानों में फसल उत्पादन को प्रभावित किया है।
यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया भर में खाद्य आपूर्ति शृंखला पहले ही बाधित हो चुकी है, जिसके जल्द ख़त्म होने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। भारत से प्रमुख अनाज और संबंधित आयात के बिना, नेपाल और बांग्लादेश को पहले से ही ऊंची कीमतों के और बढ़ने की गंभीर संभावना का सामना करना पड़ रहा है, जिससे बड़े पैमाने पर मुद्रास्फीति बढ़ेगी।
बांग्लादेश लघु और मध्यम अवधि के लिए चावल और गेहूं की गारंटीकृत आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए रूस और म्यांमार के साथ तत्काल बातचीत कर रहा है। ढाका की रिपोर्टों से पता चलता है कि देश की मौजूदा स्टॉक स्थिति स्वस्थ है। लेकिन 2024 की शुरुआत में, जब चुनाव होंगे, मौजूदा भंडार ख़त्म हो जायेगा। रूस और म्यांमार दोनों ने बिक्री मूल्यों का उल्लेख किया है जो बांग्लादेश को बहुत अधिक लगता है। यह भी निश्चित नहीं है कि म्यांमार ढाका की अनाज मांगों को पूरी तरह से पूरा कर सकता है।
दुनिया भर में व्याप्त कठिन आर्थिक स्थिति को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि अधिक बातचीत की आवश्यकता होगी और नीति निर्माताओं के लिए आगे कुछ कठोर सौदेबाजी करना बुद्धिमानी होगी, जिसमें बेचने वाले देश अपने लाभप्रद स्थिति का आनंद ले रहे हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि नेपाल के साथ-साथ बांग्लादेश भी एक कठिन परिस्थिति में बड़ी मदद के लिए भारत पर भरोसा कर रहा है। इन देशों के बीच अच्छे पड़ोसी संबंध एक निश्चित लाभ हैं। श्रीलंका और चीन के साथ, बांग्लादेश और नेपाल सामान्य समय में भारत में उत्पादित चावल के नियमित आयातक रहे हैं।
उदाहरण के लिए, नेपाल ने 2021 में 1.4 मिलियन टन भारतीय चावल का आयात किया, जिसकी लागत 473 मिलियन डॉलर से अधिक थी। बांग्लादेश ने 2022 में अपने कुल चावल आयात का 37 प्रतिशत भारत से खरीदा, और 2.81 मिलियन डालर से अधिक खर्च किया।
हालांकि, 2023 के अंत और 2024 की पहली तिमाही तक, भारत को अपनी विशेष मजबूरियों से जूझना होगा। संकेतों के मुताबिक लोकसभा चुनाव 2024 के मध्य में होंगे। खाद्य कीमतें एक बड़ा मुद्दा होंगी। बहुत कुछ चावल, गेहूं, धान और दाल की किस्मों के घरेलू उत्पादन पर निर्भर करेगा। वर्तमान फसल-पूर्व संकेत शायद ही उत्साहवर्धक हों।
दक्षिणी राज्यों से शुरुआत करते हुए, अलनीनो कारक के कारण पूर्व और मध्य भारत के कुछ हिस्सों में मानसून वर्षा में गिरावट की उम्मीद है। इसलिए अधिकांश अर्थशास्त्रियों और योजनाकारों को समग्र खाद्य/सब्जी उत्पादन में कमी की आशंका है। मात्रा में कमी के परिणामस्वरूप उच्च कीमतें होने की संभावना है, जिसे मौजूदा भंडार का उपयोग करके केवल आंशिक रूप से पूरा किया जा सकता है। 2024 के चुनावों से पहले लंबी तैयारी अवधि के दौरान यह मुद्दा राजनीतिक रूप से संवेदनशील होने के साथ-साथ निर्णायक भी हो सकता है। बेरोजगारी, गिरते निर्यात और औद्योगिक उत्पादन के वर्तमान स्तर के साथ भारत की अपनी अर्थव्यवस्था बहुत अच्छी नहीं चल रही है। कोई आश्चर्य नहीं कि भारत सरकार ने चावल और चीनी आदि के अपने सामान्य निर्यात पर फिलहाल प्रतिबंध लगा दिया है।
सवाल उठता है कि प्रभावी घरेलू शासन को बनाये रखने और अपने आर्थिक रूप से संकटग्रस्त पड़ोसियों की मदद की बेताब अपीलों को पूरा करने के बीच भारत सरकार कितनी कुशलता से एक नाजुक संतुलन बना सकती है? दक्षिण एशियाई क्षेत्र में एक सर्वमान्य नेता होने की भारत की पारंपरिक भूमिका को देखते हुए, विश्वव्यापी आर्थिक संकट के दौरान पड़ोसियों की मदद करना कोई हल्के में लिया जाने वाला कार्य नहीं है। इस बीच, काठमांडू और ढाका की मीडिया रिपोर्टों को देखते हुए, नीति निर्माता यह नहीं छिपाते कि उन्हें गर्मी के साथ-साथ आम लोगों के बीच बढ़ते तनाव का भी एहसास है। बांग्लादेश के वाणिज्य मंत्री टीपू मुंशी ने उन वस्तुओं की तत्काल आवश्यकताओं की एक सूची के साथ हाल ही में भारत का दौरा किया, जिनकी ढाका को सख्त जरूरत थी। इससे पहले दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने एक द्विपक्षीय समझौते पर काम करने पर सहमति व्यक्तकी थी जो भारत से निश्चित मात्रा में आपूर्ति की गारंटी देगा।
बांग्लादेश की मजबूरी का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है, यह देखते हुए कि सत्तारूढ़ अवामीलीग (एएल) पहले से ही अपने सबसे कट्टर प्रतिद्वंद्वी बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) के खिलाफ चुनाव पूर्व अभियान में लगी हुई है। इस प्रकार, चुनाव से पहले बांग्लादेश के लिए किसी प्रकार की खाद्य सुरक्षा हासिल करना, शत्रुतापूर्ण पश्चिम की नज़र में, सत्तारूढ़ एएल के लिए पहली प्राथमिकता है। वे पहले से ही घटनाक्रम पर बहुत बारीकी से नज़र रख रहे हैं!
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, नेपाल ने भारत पर कम से कम 100,000 टन चावल, 10 लाख टन धान और 50,000 टन चीनी की आपूर्ति करने का दबाव डाला है। जहां तक बांग्लादेश की बात है, वह 15,00,000 टन से अधिक चावल, 10,00,000 टन चीनी और 26,00,000 टन गेहूं का आयात करना चाहेगा। निकट भविष्य में इसके लिए पर्याप्त मात्रा में लहसुन, अदरक, प्याज और दाल की भी आवश्यकता होगी।
मंत्रियों और भारत सरकार के अधिकारियों ने संकेत दिया है कि भारत की अपनी मजबूरियों को देखते हुए वर्तमान स्थिति में इतनी मात्रा में खाद्यान्न आदि का निर्यात संभव नहीं हो सकता है। दोनों देशों से कहा गया है कि वे अपने प्रारंभिक आदेशों की मात्रा को यथासंभव कम करें। हालांकि, भारत ने हमेशा की तरह, अपने पड़ोसियों की ज़रूरत की घड़ी में उनके साथ खड़े रहने की प्रतिबद्धता दोहराई। हालिया वार्ता के बाद बांग्लादेश ने पहले ही भारत से आवश्यकताओं की एक संशोधित सूची जमा कर दी है। लेकिन नेपाल के साथ-साथ उसे अभी भी भारत पर भरोसा है कि वह प्रमुख रूप से उसकी मदद करेगा।